मुर्गियों में होने वाले प्रमुख रोग: मुर्गी पालन (Poultry Farming) हमारे देश में आय का एक बेहतरीन व्यवसाय है। लेकिन कई बार मुर्गियों में होने वाली बीमारियों की वजह से मुर्गीपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए मुर्गी पालन व्यवसाय में मुर्गीपालक को मुर्गियों में होनी वाली बीमारी के बारे में जानकारी होनी चाहिए, ताकि समय रहते उनका इलाज किया जा सके और नुकसान होने से बच सके।

आज के इस लेख में हम आपको मुर्गियों में होने वाले प्रमुख रोग, लक्षण एवं बचाव के बारे में जानकारी देने वाले है। इसलिए इस लेख को पूरी ध्यान से पढ़े
मुर्गियों में होने वाले रोगों के नाम
◾ रानीखेत/झुमरी (Ranikhet disease)
◾ फाउल पॉक्स/चेचक माता रोग (Foul Pox)
◾ बर्ड फ्लू (Bird Flu)
◾ मैरेक्स (Marex)
◾ गम्बोरो (Gumboro)
◾ फाउल टाइफाइड (Foul Typhoid)
◾ अतिसार/दस्त (Diarrhea)
मुर्गियों में होने वाले रोग, लक्षण एवं बचाव (Diseases, Symptoms and Prevention of Chickens in Hindi)
रानीखेत/झुमरी (Ranikhet Disease)
रानीखेत मुर्गियों में होने वाली सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है। यह एक संक्रामक रोग है, जो मुर्गी पालन के लिए सबसे ज्यादा घातक है। इसमें मुर्गियों को सांस लेने में दिक्कत होती है और वे मर जाती हैं। इसके अलावा मुर्गियों में यह संक्रमित होने पर मुर्गियां अंडे देना बंद कर देती हैं। और यह रोग पैरामाइक्सो विषाणु के कारण होता है।
रानीखेत रोग के लक्षण –
- मुर्गियों को सांस लेने में परेशानी होती है।
- मुर्गियों को तेज बुखार होता है।
- अंडे के उत्पादन में गिरावट होना।
- मुर्गियां हरे रंग की बीट करने लगती है।
- कभी-कभी पंख और पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं।
बचाव –
अभी तक रानीखेत बीमारी का कोई पुख्ता इलाज नहीं मिल पाया है। हालांकि, टीकाकरण के जरिए इससे बचाव संभव है। इसमें R2B और N.D.Killed जैसे टीके अहम हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक मुर्गियों को 7 दिन, 28 दिन और 10 हफ्ते में टीका देना सही रहता है।
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फाउल पॉक्स/चेचक माता रोग (Foul Pox)
फाउल पॉक्स रोग से मुर्गियों को छोटे-छोटे दाने हो जाते हैं। इन्हें आंखों की पुतलियों और सिर की त्वचा पर आसानी से देखा जा सकता है। यह भी वायरस जनित बीमारी है, जिसका संक्रमण तेजी से फैलता है।
फाउल पॉक्स रोग के लक्षण –
- आँखों में पानी आने लगता है।
- सांस लेने में परेशानी होना।
- मुर्गियां खाना-पीना कम कर देती हैं।
- अंडे देने की क्षमता में गिरावट होना।
- मुंह में छाले हो जाते है।
- संक्रमण बढ़ने पर मुर्गियां भी मर जाती हैं।
बचाव –
6 से 8 सप्ताह में लेयर मुर्गियों का टीकाकरण करके फाउल पॉक्स रोग से बचा जा सकता है।
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बर्ड फ्लू (Bird Flu)
बर्ड फ्लू मुर्गियों तथा अन्य पक्षियों में होने वाला घातक रोग है। यह रोग इन्फ्लूएंजा-ए वायरस के कारण होता है। अगर एक मुर्गी को यह संक्रमण हो जाए तो दूसरी मुर्गियां भी बीमार होने लगती हैं। यह वायरस संक्रमित मुर्गे के नाक और आंखों से निकलने वाले स्राव, लार और बीट में पाया जाता है। इसके लक्षण 3 से 5 दिन में दिखने लगते हैं।
बर्ड फ्लू रोग के लक्षण –
- मुर्गे-मुर्गी के सिर और गर्दन में सूजन।
- अंडे के उत्पादन में अचानक गिरावट।
- मुर्गियां खाना बंद कर देती हैं।
- मुर्गियों की तेजी से मौत होने लगती हैं।
बचाव –
बर्ड फ्लू का कोई स्थायी इलाज नहीं है। इस बीमारी से बचाव ही एक मात्र उपाय है।
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मैरेक्स (Marex)
मैरेक्स रोग मुर्गियों में होने वाले कैंसर की तरह है। यह रोग धीरे-धीरे फैलता है और मुर्गियां कमजोर होने लगती हैं। वहीं, मुर्गियों के बाहरी और आंतरिक अंग बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं। यह रोग दाद विषाणु के कारण होता है।
मैरेक्स रोग के लक्षण –
- पैरों, गर्दन और पंखों को paralyzes हो जाता है।
- मुर्गियां ठीक से आहार भी नहीं खा पातीं।
- मुर्गियां लंगड़ाने लगती हैं।
- सांस लेने में परेशानी होना।
- अंदरूनी अंगों में ट्यूमर बनने लगते हैं।
बचाव –
टीकाकरण ही मुर्गियों को इस बीमारी से बचाता है। हैचरी में पहले दिन चूजों को बीमारियों से बचाने के लिए टीका लगाया जाता है। यह टीका लेयर और ब्रायलर दोनों मुर्गियों को लगाया जाता है।
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लीची रोग (Litchi Disease)
लीची रोग मुर्गियों के चूज़ों में होने वाली एक खतरनाक बीमारी है। संक्रामक होने के कारण यह तेजी से फैलता है। लीची रोग से मुर्गियों के दिल और लीवर पर असर पड़ता है। एडेनोवायरस इस बीमारी का मुख्य कारण है। यह रोग इतना घातक होता है कि फार्म की सभी मुर्गियों की मौत हो सकती हैं।
लीची रोग के लक्षण –
- लीची रोग ब्रॉयलर मुर्गियों में आम है।
- चूजों को सुस्ती आने लगती है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने लगती है।
- लीवर पानी से भर जाता है।
- दिल छिली हुई लीची जैसा लगता है।
बचाव –
लीची रोग से बचाव के लिए लगभग 7 दिनों के चूजों को एचपी/HP का टीका लगाया जाता है।
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गम्बोरो (Gumboro)
गम्बोरो रोग मुर्गियों के चूज़ों में अधिक पाया जाता है। यह रोग रियो वायरस के कारण फैलती है। अगर एक मुर्गी को गम्बोरो रोग हो जाता है तो फार्म की अन्य मुर्गियां भी संक्रमित हो जाती हैं। इसका संक्रमण लगभग 2 से 15 सप्ताह की मुर्गियों में देखा जा सकता है।
गम्बोरो रोग के लक्षण –
- मुर्गियां भूख खो देती हैं।
- वे सुस्त और कमजोर हो जाते हैं।
- शरीर में भी कंपन होता है।
- मुर्गियों की बीट सफेद हो जाती है।
- मुर्गियों को अधिक प्यास लगना।
- कई बार मुर्गियों की मौत भी हो जाती है।
बचाव –
वैक्सीनेशन वायरस स्ट्रेन के आधार पर किया जाता है। रोग को रोकने के लिए हल्के, मध्यवर्ती, आक्रामक मध्यवर्ती और गर्म तनाव वाले टीकों का उपयोग किया जाता है। पशु चिकित्सक टीका तय करते हैं।
फाउल टाइफाइड (Foul Typhoid)
फाउल टाइफाइड रोग साल्मोनेला गैलिनेरम बैक्टीरिया के कारण होता है। मुर्गियों में यह रोग दूषित आहार के कारण विकसित होता है। यह एक खतरनाक बीमारी है, जिसमें मुर्गियां भी मर जाती हैं। इसके अलावा यह बीमारी अंडे से चूजों में भी फैल सकती है।
गम्बोरो रोग के लक्षण –
- मुर्गियां कम आहार खाने लगती है।
- मुर्गियों को बहुत प्यास लगती है।
- मुर्गियों के लीवर और आंतों में सूजन हो जाती है।
- मुर्गियों के पंख भी प्रभावित होते हैं।
बचाव –
मुर्गियों में प्रजनन के दौरान एक प्रकार का एंटीजन टेस्ट किया जाता है। पॉजिटिव आने पर उनकी ब्रीडिंग नहीं की जाती है। पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार उपचार किया जाता है।
अतिसार/दस्त (Diarrhea)
जब मुर्गियों से निकलने वाला बीट पतला और हरा, पीला या सफेद रंग का हो तो उसे अतिसार/दस्त कहते हैं। इसका मुख्य कारण मुर्गियों को खराब आहार और चारा या वायरस, बैक्टीरिया या परजीवी के संक्रमण के कारण होता है।
अतिसार/दस्त रोग के लक्षण –
- मुर्गी लगातार पतली बीट करने लगती हैं।
- मुर्गी की बीट का रंग हरा, पीला, और सफेद हो सकते हैं।
- कभी-कभी दस्त में खून भी आ जाते हैं।
- लगातार दस्त के कारण मुर्गियां बेहद कमजोर हो जाती हैं।
बचाव –
अतिसार/दस्त से प्रभावित मुर्गियों को सल्फाग्युनिडीन, सल्फामेथाजीन या थैलाजोल जैसे सल्फाड्रग्स की आधी गोली दिन में 2-3 बार पानी के साथ देनी चाहिए। यदि दस्त में खून मिला हो तो 0.5 ग्राम नेबलोन चूर्ण पानी के साथ देने से लाभ होता है।
Note: स्वास्थ्य मुर्गियों को संक्रमित मुर्गियों से अलग रखें।