भैंस पालन कैसे करें [सितम्बर 2023]| Buffalo Farming in Hindi

Buffalo Farming in Hindi: सदियों से किसान खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करते आ रहे हैं। कई किसान खेती के साथ-साथ गाय-भैंस पालन कर दोहरा मुनाफा कमाते हैं। आज के समय में कई किसान भाई भैंस पाल कर दूध से अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. आज हम आपको बताएंगे कि भैंस पालन कैसे किया जाता है

bhains Palan

क्योंकि किसी भी व्यवसाय को शुरू करने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेनी चहिए। भैंस पालन व्यवसाय को कैसे शुरू करें और भैंस की अधिक दूध देने वाली नस्ल और उनमें होने वाली बीमारियों के बारे में बात करेंगे।

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भैंस पालन कैसे करें? 2023

भारत में सदियों से पशुपालन चला आ रहा है और किसान इस कार्य को करने में रुचि भी रखते हैं कई किसान खेती के साथ साथ गाय भैंस पालन भी करते हैं जिससे दूध प्राप्त होता है वर्तमान समय में दूध की मांग भी अत्यधिक है दूध से अनेक प्रकार के खाद्य सामग्री बनाई जाती है भैंस पालन करने से पहले उसके बारे में आपको पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

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भैंस पालन शुरू करने के लिए आवश्यक चीजें

हेलो दोस्तों अगर आप भैंस पालन व्यवसाय कार्य शुरू करना चाहते हैं और आप यह सोच रहे हैं कि हमें किन किन सामग्री आवश्यकता पड़ेगी तो उसकी जानकारी नीचे संक्षेप में दी गई है।

जमीन की आवश्यकता

पशु पालन करने के लिए सबसे पहले आपके पास जमीन होनी चाहिए वैसे तो गांव में रहने वाले किसान भाइयों के पास जमीन होती है। यदि आपके पास जमीन नहीं है तो आप किराए पर भी उस कार्य को कर सकते हैं भैंस के रहने के लिए 12 से 15 वर्ग मीटर जगह होनी चाहिए क्योंकि यह कार्य बिना जमीन के करना संभव नहीं है।

भैंस को रखने के लिए बाड़े का निर्माण

यदि आप भैंस को रखने के लिए बाड़े का निर्माण करना चाहते हैं तो उसके लिए मैं आपको पूर्ण जानकारी दूंगा निभाने के लिए किया जाता है क्योंकि भैंस को धूप, बारिश, सर्दी से बचाव के लिए किया जाता है बड़े के निर्माण करने के लिए आपको टीन की चादर या सीमेंट की चादर की आवश्यकता पड़ेगी सबसे पहले हमें चारों तरफ बाड़ा बनाकर तैयार करना है फिर उसके ऊपर हमें टीन या सीमेंट की चादर लगा देना है फिर आप उसमें भैंस रख सकते हैं।

भैंस के लिए संतुलित आहार

वैसे तो ग्रामीण क्षेत्र में किसान भाई जानवरों के लिए अपने खेत में हरे चारे बरसीम, ज्वार, बाजरा जानवरों के लिए चारा खेत में उगाते हैं हरा चारा खिलाने से दूध में बढ़ोतरी तो होती है। यदि आप इस से अधिक पैसा कमाना चाहते हैं तो जानवरों को मक्का, सरसों की खली, गेहूं आदि संतुलित आहार के रूप में देना चाहिए।

भैंस को संतुलित आहार कितना खिलाएं?

भैंस को हरे चारे के के अलावा हमें संतुलित आहार पर भी ध्यान देना चाहिए मार्केट से आप कपिला पशु आहार लाकर भैंस को चारे के साथ दे सकते हैं प्रतिदिन आप 1 से 2 किलोग्राम इन्हें चारे के साथ दे सकते हैं इसको खिलाने से दूध में बढ़ोतरी होती है और जानवर स्वास्थ्य तंदुरुस्त रहते है जिससे बीमारियां भी कम होती है।

संतुलित आहार कैसे बनाएं?

भैंस को संतुलित आहार के रूप में हरा चारा खिलाना चाहिए हरा चारा खिलाने से दूध में बढ़ोतरी होती हैं यदि आपके पास चारा बोने के लिए जमीन नहीं है तो सबसे पहले आपको उसके चारे के बारे में सोचना होगा जब तक आप पशु को चारा नहीं देंगे तो मुनाफा नहीं पाएंगे घर पर संतुलित आहार बनाने के लिए आप मक्का, जो, बाजरा, सरसों की खली, गेहूं आदि का उपयोग करके संतुलित आहार बना सकते हैं।

भैंस के लिए पानी की व्यवस्था

कोई भी जानवर चारा खाने के बाद पानी अवश्य पीता है क्योंकि चारा खाने के बाद प्यास लगती है और हम जानवरों को पानी देते भी हैं किसी बर्तन बाल्टी में भरकर उन्हें पिलाते हैं किंतु वर्तमान समय में आधुनिक सुविधा उपलब्ध हो गई है जानवरों को पानी देने के लिए एक लोहे का बर्तन तैयार किया है जिसमें पानी तभी आता है जब जानवर उसमें मुंह डालता है और जब मुंह निकालता है तो पानी ऑटोमेटिक बंद हो जाता है इससे यह फायदा होता है कि जानवर को शुद्ध ताजा पानी मिलता है और आपके समय की भी बचत होती है।

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भैंस की प्रमुख नस्लें:

अगर आप भैंस की प्रमुख नस्लें के बारे में जानना चाहते हैं तो उसके बारे मैं आपको विस्तार से बताऊंगा जब भी कोई व्यक्ति भैंस को खरीदना चाहता है तो सबसे पहले यह सोचता है कि वह दूध कितना देगी। और उसको बेचकर हमें व्यापार में कितना लाभ होगा इसलिए अधिक दूध देने वाली भैंस को ही खरीदना चाहता है।

  • मुर्रा भैंस- यह भैंस दूध देने वाली सबसे अच्छी नस्लों में से एक है यह भारत के सभी राज्यों में पाई जाती है इसकी उत्पत्ति हरियाणा के रोहतक, हिसार व करनाल जिले से हुई है इनके शरीर का रंग काला होता है और इनके छोटे सिंग घुमावदार होते हैं नीचे पूछ में सफेद धब्बे होते हैं।
  • गोदावरी भैंस- यह नस्ल आंध्र प्रदेश पूरब से पश्चिम के गोदावरी जिले में पाई जाती है या नस्ल दूध उत्पादन के लिए पाली जाती है क्योंकि इसमें दूध की वसा अधिक पाई जाती है इस नस्ल में रोग लड़ने की क्षमता अधिक होती है यह नस्ल की उत्पत्ति मुर्रा नरो से मादाओं का संगम करके हुई।
  • सुरती भैंस- यह भैंस की नस्ल गुजरात के क्षेत्र में पाई जाती है वहां के ग्रामीण क्षेत्र के किसान अधिकतर इसका पालते हैं यह भैंस और भैंस की तुलना में इनके शरीर का आकार छोटा होता है जो चारा कम खाती है और पालने में खर्चा कम आता है और दुध भी अधिक देती हैं।
  • भदावरी भैंस- यह नस्ल संसार में पाई जाने वाली अद्भुत नस्ल में से एक है क्योंकि यह सभी जानवरों की प्रजाति में से दूध देने वाली नस्ल है या गुजरात के क्षेत्र में पाई जाती है और इसको भी कटोरा के नाम से भी जाना जाता है।
  • जाफराबादी भैंस- इस नस्ल की शुरुआत गुजरात में कच्छव के जामनगर जिले से हुई है यह भैंस में सबसे भारी नस्ल है इनके माथा के ऊपर सिंग जिसका रंग सफेद होते हैं दूध का प्रती व्यात 2100 किलोग्राम प्रति वर्ष होता है और उनके दूध में वसा की मात्रा 8% पाई जाती है प्रथम व्याप्त की अवधि 35 वर्ष से 38 वर्ष तक होती है।
  • संबलपुरी भैंस- यह नस्ल उड़ीसा के संबलपुरी जिले और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में पाई जाती है इसका दूध उत्पादक प्रतिवर्ष 2200 किलोग्राम होता है के दूध में वसा की मात्रा 9% पाई जाती है।
  • मेहसाना भैंस– इस नस्ल को गुजरात के ग्रामीण क्षेत्र किसान अपने व्यवसाय के लिए पालते हैं इसकी पहचान यह है की यह भैंस एकदम शांत स्वभाव की होती हैं इसके दूध में 7% वसा की मात्रा पाई जाती है और इसका दूध उत्पादक प्रतिवर्ष 1300 किलोग्राम होता है।
  • नागपूरी भैंस- इस नस्ल को महाराष्ट्र नागपुरी, मराठवाड़ी व पंढरपुरी जिले में पाला जाता है यह प्रतिदिन 11 लीटर दूध देती है और इसके दूध में 6% वसा की मात्रा पाई जाती है।

भैंस में प्रजनन

सफल प्रजनन के बाद ही दूध और बछड़ा भैंस के मुख्य उत्पाद होते हैं। इसलिए हमें प्रजनन की ऐसी व्यवस्था रखनी चाहिए कि भैंस को हर साल एक बच्चा मिलता रहे, तभी हमें अधिक लाभ मिल सकता है।

लेकिन पशुपालकों की चिंता का कारण यह है कि भैंस डेढ़ से दो साल में एक बार ही बच्चा देती है। प्रजनन के संबंध में पशुपालकों से अक्सर एक शिकायत सुनने को मिलती है कि भैंसें रुकती नहीं हैं और बात नहीं करती हैं। भैंस का न बोलना अर्थात मूक मद (गूंगी माता) से पशुपालकों को काफी आर्थिक हानि होती है।

इस कारण भैंस के ब्याने का अंतराल भी काफी बढ़ जाता है। सफल प्रजनन के लिए भैंस पालने के तरीकों, समस्याओं और उनके समाधान से संबंधित जानकारी भैंस प्रजनकों के लिए आवश्यक है। इस जानकारी से भैंस किसान वैज्ञानिक तरीके से अपने दम पर कई समस्याओं का समाधान कर सकते हैं और इस तरह भैंसों के दूध उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं।

गाभिन भैंस की देखभाल

गाभिन भैंस की देखभाल कैसे करनी है तो उसकी आज पूरी जानकारी दूंगा। गाभिन भैंस का खासकर ध्यान रखना पड़ता है अगर जरा सी भी लापरवाही करें तो काफी नुकसान हो सकता है।

  • गाभिन भैंस को ज्यादा भगाना दौड़ाना नहीं चाहिए ना ही डंडे से मारना डराना चाहिए।
  • भैंस को फर्श या फिसलन वाले स्थान पर बिल्कुल ना बांधे जहां पर भैंस गिरने की संभावना अधिक होती है।
  • यदि आप भैंस को खुले में चराते हैं तो आप भी जाएं क्योंकि भैंस आपस में लड़ाई करते हैं जिससे गाभिन भैंस को नुकसान पहुंच सकता है।
  • भैंस को आहार के साथ एक किलोग्राम पशु आहार दाना और साथ ही एक प्रतिशत नमक देना चाहिए।
  • भैंस को चारा देने के बाद ताजा और स्वच्छ पानी देना चाहिए।
  • ग्रीष्मकालीन मैं भैंस को दिन में दो बार अवश्य नहलाये और किसी छायादार स्थान पर बांधना चाहिए।

भैंस पालन शुरु करने में लागत और सरकारी अनुदान

भैंस पालन व्यवसाय शुरू करने के लिए सर्वप्रथम आपको 5 भैंस पालन करना होता है और इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए 4 लाख रुपए आवश्यकता पड़ती है जो कि सरकार किसानों को पशुपालन व्यवसाय शुरू करने के लिए अनुदान राशि प्रदान करती है जिसके माध्यम से आप अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। सरकार भैंस पालन के व्यवसाय में अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक का अनुदान प्रदान करती है।

भैंस पालन के लाभ

  • भैंस पालन का डायरी उद्योग में कफी महत्व है गाय और भैंस जो अधिक मात्रा में दूध देती है इसका उपयोग डायरी में व्यवसाय में किया जाता है।
  • भैंस पालन के दौरान भैंस के दूध को सीधे बेचकर मुनाफा कमाया जा सकता है।
  • इसके अलावा दूध से घी निकालकर भी अच्छी कमाई की जा सकती है।
  • इसके अलावा लगभग सभी नस्लों के बच्चे तीन से चार साल बाद प्रजनन के लिए तैयार हो जाते हैं। जिससे तीन वर्ष बाद कुल पशुओं की संख्या लगभग दोगुनी हो जाती है। जिन्हें बेचने से अच्छा मुनाफा होता है।

भैंस में होने वाली बीमारियां एवं बचाव

गलघोटू रोग: भारत में भैंस को होने वाला बीमारी गलघोटू रोग है इससे पशु की मृत्यु होने की संभावना बढ़ जाती है यह रोग “पास्चुरेला मल्टोसीडा” नामक जीवाणु के संपर्क में आने से होता है सामान्य तौर पर कहे तो यह जीवाणु पशु के स्वास तंत्रिका के ऊपरी भाग में मौजूद होता है मौसम का परिवर्तन शरद ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु किसके प्रभाव से कुपोषण रोग खुर पका रोग जैसी जानलेवा बीमारियां भैंस को जकड़ लेती है। और यह संक्रमित पशु के दूषित चारे, पानी से अन्य पशु मैं बीमारी फैलती है।

गलघोटू रोग से बचाव:

  • बीमार भैंस को स्वास्थ्य जानवरों से अलग रखें।
    बीमार भैंस को एक अलग पात्र में चारा और पानी देना चाहिए क्योंकि यह रोग पानी और स्वास द्वारा अन्य पशुओं में तेजी से फैलती है।
  • जो पशु मर जाते हैं उन्हें जमीन मैं गड्ढा करके 5 फीट दबाना चाहिए जिससे यह बीमारी अन्य पशुओं में ना फैले।
  • 1 वर्ष में भैंस को दो बार गलघोटू का टीका लगवाना चाहिए काला टीका वर्षा ऋतु में लगाना चाहिए और दूसरा टीका शीत ऋतु प्रारंभ होने से पहले लगाया जाता है।

खुर और मुंह की बीमारी:

विषाणु तीव्र संक्रमण से फैलने वाला यह रोग मुख्य रूप से फटे खुर वाले पशुओं में होता है। यह रोग भैंस के उत्पादन को प्रभावित करता है और यदि इस रोग से ग्रसित भैंस गलघोटू या सर्रा जैसे रोगों से ग्रसित हो जाती है तो पशु की मृत्यु भी हो सकती है। यह रोग एक साथ एक से अधिक पशुओं को प्रभावित कर सकता है।

मुंह खुर रोग का बचाव:

  • प्रभावित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  • इस रोग के लिए अतिसंवेदनशील पशुओं का टीकाकरण करके।
  • साल में दो बार (मई-जून और अक्टूबर-नवंबर) टीकाकरण ही बचाव का एकमात्र प्रभावी तरीका है।
  • 15 से 30 दिनों के बाद पहला टीका और बूस्टर खुराक चार महीने से बड़े कटडे एवं कटडियों को दिया जाना चाहिए और हर 6 महीने के बाद टीकाकरण किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा अगर इस टीके से गलघोटू एवं लंगड़ी का टीका भी लगाया जाए तो पशु की जान बचाई जा सकती है।

पैरों का गलना:

जानवर के पैरों में सूजन आ जाती है जिसके कारण वहां ना तो खड़े और ना ही चल नहीं पाते हैं फिर वह धीरे-धीरे चारा पानी खाना कम कर देती है कई बार ऐसा होता है कि एक पैर में सूजन आती है तो कोई इंफेक्शन होता है या फिर कभी-कभी तो चारों पैरों में भी सूजन आ जाती है या लीवर की कमी के कारण होता है।

FAQ.

एक भैंस पालने में कितना खर्चा आता है?

अधिकतर लोग 1 लाख तक भैंस खरीदते हैं फिर वह दूध बेचने का व्यवसाय शुरू कर देते हैं और 1 वर्ष में 1.5 लाख रुपए कमा लेते हैं करीब 80 हजार रुपए चारा दाना पानी का खर्चा आता है।

1 भैंस 1 दिन में कितना चारा खाती है?

यदि एक वयस्क भैंस है तो वहां 1 दिन में 4 से 5 किलो ग्राम चारा खा लेती है।

सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस कौन सी है?

सबसे अधिक मात्रा में दूध टोडा भैंस देती है भारत के दक्षिणी क्षेत्र तमिलनाडु नीलगिरी पहाड़ियों में पाई जाती है यह 1 वर्ष में लगभग 5 हजार लीटर दूध देती है।

10 भैंस पर कितना लोन मिल सकता है?

अगर आप 10 भैंस पालन के लिए लोन लेना चाहते हैं तो आप किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से संकोच होकर 1.5 लाख रुपए तक बैंक से लोन प्राप्त कर सकते हैं।

भैस पालन में कितनी कमाई होती है?

भैंस पालन व्यवसाय शुरू करके आप अच्छी कमाई कर सकते हैं इस व्यवसाय को बड़े स्तर से करना चाहिए इसके लिए आपको 5 लाख रुपये की आवश्यकता पड़ेगी फिर आप 40% तक मुनाफा कमा सकते हैं।

भैंस कितना दूध देती है?

एक भैंस आमतौर पर 12 से 14 लीटर दूध देती है।

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